V.S Awasthi

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मेरे नयना

मेरे नयना
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नयना निर्झर बरस रहे हैं
जैसे बदरा बरसैं सावन।
पिया मिलन को तरस रही
सूना है सब घर आंगन।।

उपवन में अलि घूम रहे हैं
कोयल मधु गीत सुनाये
डाली डाली में कली खिली
जब बूंद पड़े मुस्काये
पवन की मधुरिम शीतलता
शौतन सी मुझे तड़पाये
हैं विदेश में मेरे साजन
नयना निर्झर बरस रहे हैं
जैसे बदरा बरसैं सावन

साथ बिताए पल की यादें
सोने भी नहीं देती हैं
क्यों नहीं आए पास हमारे
हर पल आंखें रोती हैं
यादों के गहरे सागर में
मैं कहीं डूब ना जाऊं
जब तुम आओगे साजन
मैं तुमसे ना मिल पाऊं
नयना निर्झर बरस रहे हैं
जैसे बदरा बरसैं सावन
विद्या शंकर अवस्थी पथिक

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2 Comments

Gunjan Kamal

05-Feb-2023 02:23 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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अदिति झा

03-Feb-2023 11:02 AM

Nice 👍🏼

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